Date : January 21, 2025


sad poetry of mirza ghalib

sad poetry of mirza ghalib

Sad poetry of mirza ghalib

Mirza Ghalib’s poetry often delves into themes of melancholy and heartache, capturing the profound depths of human emotions. Here are a few examples of his sad poetry:

मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फ़ारसी के महानतम शायरों में से एक थे, जिन्होंने अपनी शायरी में इश्क़, दर्द, और ज़िंदगी के पहलुओं को अद्भुत सुंदरता से उकेरा। ग़ालिब की शायरी दिल की गहराइयों को छूने वाली और सोच को झकझोर देने वाली होती है। उन्होंने शब्दों के जरिए भावनाओं और अनुभवों को इस कदर बयाँ किया है कि हर पाठक को उनका हिस्सा महसूस होता है।” Ghalib Shayari में आपको मिर्ज़ा ग़ालिब की कुछ दर्द भरी शायरियां पढ़ने को मिलेंगी, जो कि नीचे दी गई हैं

मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

Mirza Ghalib Shayari on Life in Hindi

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।

ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।

खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह।

हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया
पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना
कि यूँ होता तो क्या होता

ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे

Ghalib Shayari on Love

“इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के..”

“इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने…”

“इश्क़ ने पकड़ा न था ‘ग़ालिब’ अभी वहशत का रंग
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए…”

“आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद…”

“अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा…”

“इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही…”

“इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया…”

“एतबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ…”                https://novelsoul.org/