Rubaiyat of omar Khayyam

उमर ख़य्याम की रूबाईयात (Rubaiyat of omar Khayyam)
उमर ख़य्याम की रूबाईयात फ़ारसी साहित्य की बेमिसाल रचनाएँ हैं, जो उनके जीवन के अनुभवों, ज्ञान, और फिलॉसफी को दर्शाती हैं। उनकी रूबाईयात छोटी, चार पंक्तियों की कविताएं होती हैं जो गहरी सोच और भावनाओं को संक्षेप में प्रस्तुत करती हैं। उमर ख़य्याम की रूबाईयात में समय, भाग्य, प्रेम, और जीवन के प्रति उनके विचारों की झलक मिलती है।
संक्षेप में: उमर ख़य्याम अपनी रूबाईयात में जीवन की नश्वरता, वक़्त की असारता, और वर्तमान क्षण के महत्व को प्रमुखता से दर्शाते हैं। उनकी कविताओं में ईश्वर और आध्यात्मिकता पर गहन चिंतन दिखाई देता है, जो पाठकों को सोचने और समझने पर मजबूर करता है 📜✨
हर साँस के साथ मुद्दत-ए-उम्र घटी
हर साँस के साथ मुद्दत-ए-उम्र घटी
ग़फ़्लत-ए-शब-ओ-रोज़ सामने से न मिटी
अब वक़्त-ए-अजल बहुत क़रीब आ पहूँचा
ये उम्र-ए-‘अज़ीज़’ किस ख़राबी से कटी
जब हज़रत-ए-मुस्तफ़ा की बारी आई
जब हज़रत-ए-मुस्तफ़ा की बारी आई
इतराती हुई गुनाह-गारी आई
ग़म दूर हुआ ‘अज़ीज़’ ख़ुश हो ख़ुश हो
किस शान से मग़्फ़िरत हमारी आई
अहबाब-ओ-अइज़्ज़ः की मोहब्बत देखी
अहबाब-ओ-अइज़्ज़ः की मोहब्बत देखी
एक एक की वज़्अ और मुरव्वत देखी
दिल में कुछ है ज़बाँ पर कुछ है ‘अज़ीज़’
आँखें खुलीं जब से कि हक़ीक़त देखी
देखी जो निफ़ाक़ की तबाही हम ने
देखी जो निफ़ाक़ की तबाही हम ने
अहबाब से यक-दिली न चाही हम ने
ग़म खा के रहे कि फ़क़्र बदनाम न हो
ये उम्र-ए-‘अज़ीज़’ यूँ निबाही हम ने
आ’माल-ए-ज़ुबूँ से या-इलाही तौब:
आ’माल-ए-ज़ुबूँ से या-इलाही तौब:
और हिम्मत-ए-दूँ से या-इलाही तौब:
तक़लीद-ए-हवा-ए-नफ़्स और उमीद-ए-नजात
इस जोश-ए-जुनूँ से या-इलाही तौब:
आमद सहरे निदा ज़ मय-ख़ान:-ए-मा
आमद सहरे निदा ज़ मय-ख़ान:-ए-मा
कि-ऐ रिंद-ए-ख़राबाती-ओ-दीवानः-ए-मा
बर-ख़ेज़ कि पुर कुनेम पैमानः ज़ मय
ज़ाँ पेश कि पुर कुनंद पैमानः-ए-मा
दर राह चुनाँ रौ कि सलामत न-कुनंद
दर राह चुनाँ रौ कि सलामत न-कुनंद
बा ख़ल्क़ चुनाँ ज़ी कि क़यामत न-कुनंद
दर मस्जिद अगर रवी चुनाँ रौ कि तुरा
दर पेश न-ख़्वाहंद व इमामत न-कुनंद
इश्क़े कि मजाज़ी बुवद आबश न-बुवद
’इश्क़े कि मजाज़ी बुवद आबश न-बुवद
चूँ आतिशे नीम-मुर्दाः ताबश न बुवद
‘आशिक़ बायद कि साल-ओ-माह-ओ-शब-ओ-रोज़
आराम-ओ-क़रार-ओ-ख़ूर-ओ-ख़्वाबश न-बुवद
मा ख़िर्क़:-ए-ज़ोह्द दर सर-ए-ख़ुम करदेम
मा ख़िर्क़:-ए-ज़ोह्द दर सर-ए-ख़ुम करदेम
वज़ ख़ाक-ए-ख़राबात तयम्मुम करदेम
बाशद कि दरून-ए-मय-कद: दरयाबेम
‘उम्रे कि दरून-ए-मदरसा गुम करदेम
ता-बूद दिलम ज़ ’इश्क़ महरूम न-शुद
ता-बूद दिलम ज़ ’इश्क़ महरूम न-शुद
कम बूद ज़ असरार कि मफ़्हूम न-शुद
अकनूँ कि हमी ब-निगरम अज़ रू-ए-ख़िरद
मा’लूमम शुद कि हेच मा’लूम न-शुद
गोयन्द मरा कि मय-परस्तम हस्तम
गोयन्द मरा कि मय-परस्तम हस्तम
गोयन्द मरा ’आरिफ़-ओ-मस्तम हस्तम
दर ज़ाहिर-ए-मन निगाह-ए-बिस्यार मकुन
कि-अन्दर बातिन चुनाँ कि हस्तम हस्तम
मन बन्द:-ए-आ’सियम रज़ा-ए-तू कुजास्त
मन बन्द:-ए-आ’सियम रज़ा-ए-तू कुजास्त
तारीक दिलम नूर-ए-सफ़ा-ए-तू कुजास्त
मा रा तू बहिश्त अगर बताअ’त बख़्शी
ईं मुज़्द बुवद लुत्फ़-ओ-अ’ता-ए-तू कुजास्त
उमरत ता-कै ब-ख़ुद-परस्ती गुज़रद
’उमरत ता-कै ब-ख़ुद-परस्ती गुज़रद
या दर पय-ए-नेस्ती-ओ-हस्ती गुज़रद
मय ख़ुर कि चुनीं उ’म्र कि ग़म दर पय-ए-ऊस्त
आँ बेह कि ब-ख़्वाब या ब-मस्ती गुज़रद
आँ बाद: कि क़ाबिल-ए-हयातस्त ब-ज़ात
आँ बाद: कि क़ाबिल-ए-हयातस्त ब-ज़ात
गाहे हैवाँ मी-शवद ब-गाह नबात
ता ज़न न बरी कि हस्त गर्दद हैहात
मौसूफ़ ब-ज़ात अस्त गर नीस्त सिफ़ात
असरार-ए-अज़ल बाद:परस्ताँ दानंद
असरार-ए-अज़ल बाद:परस्ताँ दानंद
क़द्र-ए-मय-ओ-जाम तंग-दस्ताँ दानंद
गर चश्म-ए-तू हाल-ए-मन ब-दानद न ‘अजब
शक नीस्त कि हाल-ए-मस्त मस्ताँ दानंद
असरार-ए-अज़ल बाद:परस्ताँ दानंद
असरार-ए-अज़ल बाद:परस्ताँ दानंद
क़द्र-ए-मय-ओ-जाम तंग-दस्ताँ दानंद
गर चश्म-ए-तू हाल-ए-मन ब-दानद न ‘अजब
शक नीस्त कि हाल-ए-मस्त मस्ताँ दानंद
अज़ आतिश-ओ-बाद-ओ-आब-ओ-ख़ाकेम हम:
अज़ आतिश-ओ-बाद-ओ-आब-ओ-ख़ाकेम हम:
दर ’आलम-ए-कौन दर हलाकेम हम:
ता तन बा मास्त दर जफ़ाएम हम:
चूँ तन ब-रवद रवाँ पाकेम हम:
ऐ ज़िंदगी-ए-तन-ओ-तवानम हम: तू
ऐ ज़िंदगी-ए-तन-ओ-तवानम हम: तू
जानी-ओ-दिली ऐ दिल-ओ-जानम हम: तू
तू हस्ती-ए-मन शुदी अज़ आनी हमः-तन
मन नीस्त शुदम दर तू अज़ नम हम: तू
ऐ दर रह-ए-बंदगीस्त यकसाँ कि दमेह
ऐ दर रह-ए-बंदगीस्त यकसाँ कि दमेह
दर हर दो-जहाँ ख़िदमत-ए-दरगाह-ए-तू बेह
नक्बत तू सितानी-ओ-सआ’दत तू देही
यारब तू ब-फ़ज़्ल-ए-ख़्वेश ब-सितान-ओ-ब-देह https://novelsoul.org/