मोहब्बत पर बशीर बद्र की शायरी

बशीर बद्र उर्दू की मक़बूल हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने शेर-ओ-शायरी को नया मुकाम दिया, पेश हैं उनकी कलम से निकले ये चंद अशआर
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया
अगर फ़ुर्सत मिले
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
अजीब शख़्स है
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे
इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं
उड़ने दो परिंदों को
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
कितनी सच्चाई से
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा
चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मोहब्बत पर बशीर बद्र की शायरी
मोहब्बत पर बशीर बद्र की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी –
“उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए…”
-बशीर बद्र
“न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की…”
-बशीर बद्र
“मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला…”
-बशीर बद्र
“पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा…”
-बशीर बद्र
“इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे…”
-बशीर बद्र
“तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो…”
-बशीर बद्र
“हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे…”
-बशीर बद्र
