Top 20 poetry of Mir Taqi Mir

Top 20 poetry of Mir Taqi Mir
मीर तकी मीर उर्दू शायरी के महान शायर माने जाते हैं। उनकी शायरी मानवीय भावनाओं – प्रेम, दुःख, तड़प और आत्मनिरीक्षण – की गहराई को चित्रित करती है। मीर की शायरी उनकी व्यक्तिगत अनुभवों और मानव अस्तित्व के सार्वभौमिक विषयों को बड़े संवेदनशीलता और गहराई के साथ व्यक्त करती है। उनकी कविताओं में प्रेम की जटिलताओं, बिछड़ने का दर्द और जीवन की क्षणभंगुरता जैसे विषय अक्सर सामने आते हैं। मीर की शायरी उनकी लिरिकल सुंदरता, भावनात्मक गहराई और शाश्वत प्रासंगिकता के लिए सराही जाती है।
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
अब तो जाते हैं बुत-कदे से ‘मीर’
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं ‘मीर’ बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा ‘मीर’
क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
हमारे आगे तिरा जब किसू ने नाम लिया
दिल-ए-सितम-ज़दा को हम ने थाम थाम लिया
दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
सिरहाने ‘मीर’ के कोई न बोलो
अभी टुक रोते रोते सो गया है
मिरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में
तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया
ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत काम
आफ़ाक़ की इस कारगह-ए-शीशागरी का
‘मीर’ के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
उस के फ़रोग़-ए-हुस्न से झमके है सब में नूर
शम-ए-हरम हो या कि दिया सोमनात का
चश्म हो तो आईना-ख़ाना है दहर
मुँह नज़र आता है दीवारों के बीच
किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक
मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया
जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा ‘मीर’ ज़ि-बस
उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते