Faiz Ahmad Faiz Poetry: पढ़ें फैज अहमद फैज के 20 बेहतरीन शेर
Faiz Ahmad Faiz Poetry: पढ़ें फैज अहमद फैज के 20 बेहतरीन शेर
Faiz Ahmad Faiz Poetry: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) भारत के जाने माने उर्दू और पंजाबी शायर थे. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) पर आरोप लगते रहे हैं कि वह कम्यूनिस्ट थे और इस्लाम से इतर रहते थे. जेल के दौरान लिखी गई उनकी कविता ‘ज़िन्दान-नामा’ को बहुत पसंद किया गया था. फ़ैज़ ने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊँचाई दी. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) को 1963 में सोवियत रशिया से लेनिन शांति पुरस्कार दिया गया. 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिये भी उनका नामांकन किया गया था.
Faiz Ahmad Faiz Poetry
- और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया - तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं - न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है - नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही - इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के - आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के ब’अद आए जो अज़ाब आए - तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे - न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है - सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे - बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते - जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जब तिरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई - रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई
जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए - उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है
जो गाह गाह जुनूँ इख़्तियार करते रहे - ‘फ़ैज़’ थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए - मेरी ख़ामोशियों में लर्ज़ां है
मेरे नालों की गुम-शुदा आवाज़ - हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे - अब अपना इख़्तियार है चाहे जहाँ चलें
रहबर से अपनी राह जुदा कर चुके हैं हम - दिल से तो हर मोआमला कर के चले थे साफ़ हम
कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई - शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई - जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या